लन्तरानी
बड़े-बड़े किस्से होते
हम जिसे जुबानी कहते हैं
ऐसे थे हम वैसे थे
नित नई कहानी कहते हैं
गढ़ते रोज नए किस्से हैं
अपनी धाक जमाने को
बड़बोलेपन को शेखी को
ही लंतरानी कहते हैं
हास करें परिहास करें
जीवन में नव उल्लास भरे
यह उत्सव हर साल मनाएं
खुशियों को त्योहार बनाए
मन हर्षित हो नहीं दुखित हो
इस जग के मन को बहलायें
अप्रैल फूल औरों को बनाएं
बस निश्चल आनंद उठाएं
— डॉक्टर मनोज श्रीवास्तव