किस्सा
एक किस्सा है गांव का की बेटे की चाह रखने वाले लोगों ने लड़की को आग लगा दी।
एक नन्हीं परी लेती है
जन्म एक परिवार में
फूलती है कली सी वो खिलती है
उसी परिवार में वो बढ़ती है हंसाती है
कभी मां को कभी भाई को कभी पापा को
छोटी-छोटी बातें सुनाती है
उसको पता नहीं होता कि
20 बरस के बाद उसको जाना होगा
उस छोटे से कोमल मन को समझाना होगा
वो नहीं जानती वो पराया धन है
मगर अपनों को नहीं भूलना चाहता
वो चंचल कोमल मन है
20 बरस के बाद वो ब्याही जाती है
इठलाती शर्माती घबराती है
उसी को मानती अपना सुहाग
कर देती समर्पित पूरा जीवन
वह जानती है ताउम्र
वही है उसका भाग
ये कैसा हुआ किस्मत ने धोखा दिया
जाने के बाद अपने घर से उसको
हंसने का कभी ना मौका दिया
1 साल के बाद पति ने उसको थप्पड़ मारा
कुछ ना बोला उसका डरता था मन बेचारा
मां को नहीं बताऊंगी सोची होगी
उसने धीरे से उस जख्म की पपड़ी खरोचीं होगी
मौका मिला दो साल में जब मां से मिलने का
तो कभी जो हो रहा है
उसके बारे में बोल ना पाई
बेटी होती है पराया धन मां बाप
ने बस उसको यही बातें समझाई
वह मार पति की दुत्कार सासू की सहती रही
हर रोज अपने दिल को भाग्य बस यही कहती रही
उसकी किस्मत में अब कुछ अच्छा ना था
मारता था पति उसको क्योंकि
उसको अभी तक बच्चा ना था
4 साल हो गए वो सब कुछ ऐसे ही सहती गई
साथ में परिस्थितियों के पानी से बहती गई
पता नहीं था उसको ये राक्षस आग लगा सकता है
बस डर के मारे घर पर कुछ भी कह नहीं सकी
बस इसी वजह से अकेली सह सकी
जालिमों ने दूसरी शादी करने के लिए
उस को आग लगा दी मार डाला
जो बोलता बांझ का सर पर उसके उसको उतार डाला
अब मां को बेटी की बहुत याद आती है
वह ले जाकर उन सभी को कोर्ट में बस यही सुनाती है
कि सास उसकी उसको खा गई
सह कर सारी चुनौतियां मेरी बेटी
मिट्टी में समा गई
मैं बोलूं बेटी जरा सशक्त बन जाओ
जरा सा भी हो अत्याचार तो जरूर बताओ
ऐसे अत्याचारों से अवश्य बचना होगा
गली गली मोहल्ले में बस यही नारा कहना होगा
आ जाएंगे तुम्हारे सभी भाई
बस जरा तुम कहती तो
ये कहानी मेरे गांव की है
यह सारी बातें आज मैं लोगों के होठों पर देखता हूं
मैंने हिम्मत की है लिखने की मैं ना बातों को ऐसे ही फेंकता हूं
मैं नहीं चाहता यह किसी और के साथ हो
किसी भी बहन के साथ ऐसी कोई भी बात हो
बताना सुनाना ना हिम्मत हारना
दहेज ,लोभियों के झुंड को अब है मारना