खो गये हम
खो गये हम इक बड़े सैलाव में,
अपना वजूद ढूंढ न पाए तूफान में ।
आंसू तो झर दरिया बन बह चले ,
पकड़ न पाये उनको हम उफान में ।
लोभ की नगरी कितनी गहरी है,
डूबे तो आ न पाये जीवन इम्तिहान में ।
किसे अपना कहें कौन पराया है,
समझ न पाये हम इस जहान में ।
आखिर तुम भी पड़ गये “शिव “झमेले में,
इज्जत बचाना मुश्किल है शौकते शान में ।
— शिवनन्दन सिंह