कविता

खो गये हम

खो  गये  हम  इक  बड़े  सैलाव  में,
अपना  वजूद  ढूंढ  न पाए तूफान में ।
आंसू  तो  झर  दरिया बन  बह  चले ,
पकड़  न  पाये  उनको हम  उफान में ।
लोभ  की  नगरी  कितनी  गहरी  है,
डूबे  तो आ न पाये जीवन इम्तिहान में ।
किसे  अपना  कहें  कौन  पराया  है,
समझ  न  पाये  हम  इस  जहान  में ।
आखिर तुम भी पड़ गये “शिव “झमेले में,
इज्जत  बचाना  मुश्किल है शौकते शान में ।
—   शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968