गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

सच को सच कहना, यह सबके बसकी बात नहीं,
दिल मे ना मुँह से भी ना, सबके बस की बात नहीं।
अक़्सर हमने देखा है, सच सुनकर अपने ही रूठे,
अपनों की रूसवाई सहना, सबके बस की बात नही।
धन दौलत पद प्रतिष्ठा से, बड़े बने जो घर समाज में,
उनकी सहमति से असहमति, सबके बस की बात नहीं।
सुख शांति बनी रहे, सोहार्द बना रहे निज घर में,
मौन रह घुट घुट कर जीना, सबके बस की बात नहीं।
अ कीर्ति वर्द्धन