कविता

यादों की लड़ी

टूट रही है वादों की लड़ी
छुट गई यादों की  घड़ी
जब से हुई तुँ तलबगार
मोहब्बत की टुटी संसार

साथ चलने की खाई थी कसमें
काँटों को रौंद देगें पाकर रश्में
पर जब खुल गई प्रेम की द्वार
भूल गई तुँ पिछली    संसार

ठोकर खाया पर मैं ना घबराया
पीछे पीछे मैं चला बन     साया
पर जब पाई तुमने वो    मुकाम
फिर क्यूं ठुकराया मेरे मेहमान

मन में आशा की दीप    जलाई
क्यूं कर दी तुँने जग में रूसवाई
कौन सी आन पड़ी रे    नादान
क्यूं बहा दी शान में  मेरी अरमान

अब क्या जवाब दूँ मैं इस जग को
क्यों ख्वाव झूठा दिखलाया हमको
अय रब अब तुँ सुन ले मेरी फरियाद
क्यूं रूलाया हमें जवाब दो     आज

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088