कविता

जिन्दगी क्यूं व्यस्त है

हे जिन्दगी तुँ इतना क्यूं है व्यस्त
दिन रात मिहनत से मानव है पस्त
तुम्हें नहीं कुछ आराम है     करना
इन्सान के जीवन काम से है मरना

समय का पहिया जब घूम कर आता है
तुम सॅभलने का मौका एक ही देता . है
अवसर को पहचाना है जग में जिसने
सफल बनाया है तुम ही बन    अपने

कभी सफल बना देता है एक नई मुकाम
कभी रूलाकर कर देता है तुम   नाकाम
आभाव में दाने दाने को तुम है तरसाता
साथ जिसका तुम जग में उसे हँसाता

गम की पीड़ा पर देता जख्म का    दान
पल में सोहरत पल में करता    बदनाम
तन्हा जीवन का तुम हो अजीब मेहमान
ठोकर खिलाने की करता है      फरमान

हालात के चक्की में जग को तुम रूलाता
कभी किसी को ना अच्छी बात    बताता
अवसर का भूखा है जग में         इन्सान
देख लो मेरे  नाजुक हालात रे     बेईमान

क्या क्या रचता रहता है तुम जग में खेल
जीवन को बना दिया तुम  रेलम    रेल
नहीं चाहिये भौतिकता वाली छल  दौलत
दे देना बस हम को तुम खुश      किस्मत

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088