कविता

भ्रष्टाचारी

भ्रष्टाचार का रोना बंद कीजिए
शराफत से भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी का यशोगान कीजिए,
बड़े ईमानदार बने रहने फिरते हो
भला हमें भी बताओ क्या हासिल कर पाते हो?
छोटे छोटे काम के लिए भागते दौड़ते रहते हो
समय ही नहीं अपना धन भी बर्बाद करते हैं
उपहास का पात्र ऊपर से बनते हैं,
काजल की कोठरी में कालिख से बचने के चक्कर में
चकरघिन्नी बन घूमते रहते हो।
माना कि आप सभी हैं, हम भी मानते हैं
पर आपके अपने ही नाक भौं सिकोड़ते हैं।
भ्रष्टाचार आज की जरूरत है
जीवन का अभिन्न आवभगत है
भ्रष्टाचार के बिना जीवन में रंग कहां है
भ्रष्टाचारी कहलाने में जो आनंद है
वो ईमानदार होने में नहीं है।
आप सबसे मेरा आवाहन है
जी भर कर भ्रष्टाचार कीजिए और
भ्रष्टाचारी आवरण ओढ़ लीजिए
शान से जीवन गुजारिए
भ्रष्टाचार को जीवन का उद्देश्य बना लीजिए।
भ्रष्टाचार को नैतिकता का सूत्र मान लीजिए
खुद पर ही नहीं राष्ट्र समाज पर भी
थोड़ा सा ये एहसान कीजिए।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921