एक कोशिश , जरिया बनने की
ज़हर जो उगले मेरी कलम
छील के ये रख देती है
क्रोध कि ज्वाला धधक रही
लिख शांत हो कलम कहती है।।
एक कोशिश , जरिया बनने की।।2।।
भूचालों से घिरे जज़्बात मेरे
भूचालों को कलम रूख देती है
बेबाक शब्दों की मालिक तू वीना
मेरी कलम ये मुझसे कहती है।।
एक कोशिश , जरिया बनने की।।2।।
अरे घटित हो अत्याचार कहीं भी
सहन ना कर पाए , वीना कहती है
सामने से चाहे कुछ ना कर पाए मदद्
वीना की कलम आवाज़ उठाती रहती है।।
एक कोशिश , जरिया बनने की।।2।।
लाखों करोड़ों की जनता मे से यदि
कुछ संख्या पढ़ सबब सीख पाएंगे
मेरी कलम की तब आवाज़ सार्थक होगी
जब कुछ टूटे घर जुड़ फिर मुस्कुराएंगे।।
एक कोशिश , जरिया बनने की।।2।।
हां हम तो समाज के लिए पहल कर
एक कोशिश कर जरिया बनते जाएंगे।।
लेखिका हम बेबाक शब्दों को सज़ा कर
सबके हित मे कलम चलाएंगे।।
एक कोशिश , जरिया बनने की।।2।।
— वीना आडवाणी तन्वी