कविता

प्रकृति पर विजय

आज हिमालय की दुर्दशा पर
प्रकृति आंसु बहाती है
सूखी नदियां सूखे जलाशय
मानव विकास की गाथा सुनातीं
पहाड़ों के सीने को बेधती
ये विशालकाय मशीनें
पहाड़ों को रोज समतल बनाती है।
जंगलों का सघन दोहन
धरती को गर्मी से झुलसाती है।
प्रकृति पर विजय पाने की
मानव की तीव्र लालसा
पर्यावरण को असंतुलित कर जाती है।
हम इंसानो की मूढ़ता तो देखिए
जीवनदायिनी प्रकृति को
मृत्यु शय्या पर पहुंचाते हैं।
— विभा कुमारी “नीरजा” 

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P