लघुकथा

शीर्षक प्रमोशन

संजय शाम को जब दफ्तर से आया तो थोड़ा बुझा-बुझा सा लगा। छाया को तुरंत कुछ पूछना अच्छा नहीं लगा वो चाय बनाने किचन में चली गई। तभी संजय का फोन बजा। वो उठा नहीं रहे थे,छाया देखने आई तो संजय कमरे में नहीं थे ‘शायद बाथरूम में होंगे ‘ यह सोचकर छाया ने फ़ोन उठा लिया ” हलौ”
“हलो भाभी संजय कहां है?” दूसरी ओर से गौरव ने कहा
“वो तो बाथरूम गए हैं, कोई खास बात है!” छाया ने पूछा
“उसका मूड कैसा है” गौरव ने कहा
“थोड़े उदास दिख रहें हैं, क्यों दफ्तर में कोई बात हो गई?” छाया थोड़ी चिंतित होते हुए कहा
“होना क्या है भाभी, संजय को इस बार भी प्रमोशन नहीं दिया गया ” गौरव थोड़ा नाराज़ होते हुए कहा
“मैं इतने सालों से देख रहा हूं संजय अपने काम बेहतरीन है, कभी भी किसी का बुरा नहीं किया है , दफ्तर में हर किसी की मदद करता है फिर भी कई सालों से उसे प्रमोशन नहीं दिया जा रहा है। उससे कई पद नीचे वाले ऊपर पहुंच गए हैं, जिनको कुछ नहीं आता है। कई तो ऐसे हैं जिन्हें संजय ने काम सिखाया है आज वही सब ऊपर पहुंचकर संजय पर हुक्म चला रहे हैं।” गौरव ने कहा
“भैया आजकल अच्छा काम करके किसी को प्रमोशन नहीं मिलता है, आजकल प्रमोशन के लिए ऊंची सिफारिश और चापलूसी चाहिए, जो दोनों गुण आपके दोस्त में  नहीं है।” गहरी सांस लेते हुए छाया ने कहा।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P