मुक्तक/दोहा

मुक्तक

उम्र के इस दौर में भी हूँ युवा, मैं जानता हूँ,
उम्र को गिनतियों का खेल, बस मानता हूँ।
एक मासूम बच्चा मेरे अन्दर ज़िन्दा है अभी,
ताउम्र उसके संग खेलने की, ज़िद ठानता हूँ।
चाहता हूँ खेलना, बरसात के पानी में- छप छपाछप,
लुका छिपी ऊँच नीच, भागना दौड़ना- टप टपाटप।
रेत के घरोंदे बनाकर, तोड़ना या फिर से बनाना,
पेड़ पर चोरी से चढ, वो आम खाना- गप गपागप।
वो बनाना काग़ज़ की कश्ती, कापियाँ- फाड फाड़कर,
बरसात के पानी में कश्ती, फिर देखना- भाग भागकर।
छतों पर बिस्तर लगा, खुले गगन सोने की चाह आज भी,
रात में दादी से सुनना, असीमित कहानी- जाग जागकर।
— डॉ. अनन्त कीर्तिवर्द्धन