स्वास्थ्य

प्रसूताओं के लिए व्यायाम तथा भोजन

मातृत्वसुख प्राप्त करने वाली महिलाओं के लिए जिस प्रकार गर्भावस्था में विशेष भोजन और उचितव्यायाम की आवश्यकता होती है उसी प्रकार प्रसव के बाद भी उनको पौष्टिक भोजन और विशेषव्यायामों की आवश्यकता होती है, ताकि उनके शिशु को पर्याप्त और उत्तम दूध मिलता रहे और माताके साथ शिशु का स्वास्थ्य भी अच्छा रहे।
प्रसूताओं के भोजन में घी-दूध, फल, और सूखे मेवे कुछ मात्रा में अवश्य हों और हरी तरकारी कीअधिकता हो। चोकर समेत रोटी भी हो, किन्तु दाल-चावल आदि की मात्रा कम रहे तो अच्छा रहेगा।
इस अवधि में बाज़ार के चटपटे और मुर्दा भोजन से कोसभर दूर रहना चाहिए, केवल सात्विक भोजनकरना चाहिए। मिठाई खाने का मन हो, तो थोड़ा गुड़ और शहद ले सकती हैं, परन्तु सफेद चीनीविषतुल्य है।
अब व्यायाम की बात करें। गर्भावस्था में भ्रूण के कारण उदर की पेशियाँ फैल जाती हैं। यदि उचितव्यायाम करके उनको कड़ा न किया जाये, तो पेट लटकने लगता है और सिर दर्द, बदन दर्द, कब्ज, अपच, कमज़ोरी आदि अनेक शिकायतें पैदा हो जाती हैं।
इन सबसे बचने के लिए नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। ये व्यायाम ऐसे होने चाहिए, जिनसेउदर की माँसपेशियाँ लचीली और मज़बूत हों। यहाँ मैं ऐसे चुने हुए व्यायाम बता रहा हूँ जिन्हें महिलाएँप्रसव के तुरन्त बाद भी कर सकती हैं। इनको नियमित करने से पूरा शरीर फिर से सुडौल हो जाता है।
टहलना- प्रसूता को नियमित टहलना चाहिए। सामान्य चाल से शरीर सीधा रखकर 20 से 30 मिनट टहलना पर्याप्त है।
गहरी श्वास- चित लेटकर घुटने उठाकर पैरों को सिकोड़ लें। अब खूब गहरी साँस भरें औरफिर धीरे-धीरे निकालें। इसतरह पाँच-छरू बार करें।
पैर उठाना- चित लेटकर एक पैर को सीधा रखकर धीरे-धीरे उठायें, फिर धीरे-धीरे नीचे लायें।ऐसा पाँच-छरू बार करें। यही क्रिया दूसरे पैर से भी करें।
उदर संकुचन- सीधे बैठकर पैरों को सीधे आगे फैला लें। अब उदर की पेशियों को सिकोड़ें औरफैलायें। ऐसा १०-१२ बार करें।
पवन मुक्तासन- पीठ के बल लेट जायें। घुटनों को मोड़कर दोनों हाथों से कसकर पकड़ लें।इस अवस्था में सिर को उठायें और कुछ सेकंड बाद पहले की तरह सीधा रखें। ऐसा ८-१० बार करें।
अश्वनी मुद्रा- पीठ के बल लेट जायें।अब गुदा की पेशियों को सिकोड़ें और फैलायें। ऐसा८-१० बार करें।
सभी व्यायामों के बाद ५ मिनट तक शवासन में विश्राम अवश्य कर लेना चाहिए।
नोट- यदि प्रसव सामान्य न हो अर्थात् ऑपरेशन से हुआ हो, तब भी ये व्यायाम किये जा सकते हैं और अनिवार्य रूप से करने चाहिए।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]