बालगीत – रहते घर में जीव हमारे
रहते सँग – सँग जीव हमारे।
घर में निशि – दिन लगते प्यारे।।
मच्छर मक्खी नित के साथी।
रहते नहीं घरों में हाथी।।
खटमल कभी – कभी मिलता रे।
रहते सँग- सँग जीव हमारे।।
छिपकलियाँ नित गश्त लगातीं।
छत में रेंग – रेंग कर जातीं।।
चूहे बिल में रहते न्यारे।
रहते सँग – सँग जीव हमारे।।
छोटी – छोटी चुहियाँ सारी।
करें कुतर कर हानि हमारी।।
काट कुतर कर ग्रंथ उजारे।
रहते सँग – सँग जीव हमारे।।
चींटी – चीटों को क्यों भूलें?
वर्षा में मेढक भी ऊलें।।
जुगनू चमक रहे उजियारे।
रहते सँग – सँग जीव हमारे।।
देख ठिकाना नीड़ बनाती।
गौरैया परिवार बसाती।।
चिचियाते खग – शावक सारे।
रहते सँग -सँग जीव हमारे।
आते – जाते – कुत्ते, बिल्ली।
लिपटी हुईं देह से किल्ली।।
पीती खून, ढोर बेचारे।
रहते सँग -सँग जीव हमारे।।
गाय , भैंस , भेड़ें या बकरी।
दूधदायिनी नगला – नगरी।।
पी ले मट्ठा, घी, दधि प्यारे।
रहते सँग – सँग जीव हमारे।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’