आदत हो गई
मशहूर होने की इस दिल को जरा आदत हो गई,
खुद को देखने की अखबार में जरा चाहत हो गई|
प्रतिदिन भेजना रचनाएं दिनचर्या का अभिन्न अंग
छप ना पाए गर वो तो, ना जाने क्यों आहत हो गई|
संपर्क सूत्र संपादक का कई लोग देना चाहते नहीं
बस इस बात पर क्यों परेशान, मैं भला बाबत हो गई|
जिसके हिस्से में जो है वह तो मिलना तय ही है
यह सोच कर अब सुकून और जरा राहत हो गई|
नि:स्वार्थ भाव से अपने कर्म पथ बस पर बढ़ता चल
देखना तुझ पर इक दिन उसकी, कैसे रहमत हो गई||
इत उत ढूंढे क्यों तू मीरा, तुझ में तो खुद वो है निहित
तेरे हौसले के आगे जलने वालों की, शिकस्त हो गईl
— सविता सिंह मीरा