गीतिका/ग़ज़ल

कोई अपना

मंजिलें मिले हर किसी को ये मुमकिन नहीं

कुछ सफ़र तो उम्रभर खत्म होती नहीं !
हाथों की लकीरों में होती हैं तकदीर सभी की
क्या उनकी तकदीर नहीं जिनके हाथ होते  ही नहीं !
जिन सपनों के पीछे भागा किए उम्रभर
जब सपने पूरे होने को हुए तब उम्र बाकी नहीं !
अपने पराए का भेद करते रहे हर कहीं
जब घर के चिराग भेद करें तब सहा जाता नहीं !
बेसबब और बेमानी है जिंदगी की खुशियां सभी
जब खुशियां बांटने को कोई अपना पास नहीं!

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P