लघुकथा

सच्ची राजनीति

पार्टी हाइ कमान के सामने जाते हुए पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष की टाँगें बुरी तरह काँप रही थीं।

 हाइ कमान ने सवाल दागा, “प्रदेश में लाखों समर्पित कार्यकर्ताओं व भरपूर संसाधनों के बावजूद हम चुनाव हार गए। हमें तो तुम्हारी बिरादरी के भी वोट नहीं मिले। ऐसा क्यों ?”
“क्यूँकि हम जाति और धर्म के भरोसे चुनाव लड़ रहे थे जबकि विपक्षी नेताओं ने आम जनता से सीधे जुड़े मुद्दों  महँगाई, भ्रष्टाचार व बेरोजगारी पर बात की।” अपनी जेब से एक लिफाफा निकालकर मेज पर रखते हुए उसने आगे कहा, “मुझे खेद है कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका। प्रस्तुत है मेरा इस्तीफा।”
“तो अब क्या करोगे ?”
“अब सच्ची राजनीति करुँगा।”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।