आल्हा छन्द (16+15=31) गीतिका
शब्द मौन हैं व्यथा देखकर,धरती का उजड़ा श्रृंगार
बंजर हो गई भूमि अपनी,उगे वनो पर करे प्रहार,
मानव की सुविधा की खातिर,हम विकास पर देते जोर
पेड़ काट कर सड़को का अब,करते हैं हम जब विस्तार
देख हृदय दुख से भर जाता,कहीं उखड़ता है जब पेड़
वक्त अभी वो आने वाला,नही मिलेगा जब आहार
पंछी को बेघर हम करते,कानन का छीना आवास
पारितन्त्र को तहस नहस कर,करते विपदाएं साकार
मौसम में बदलाव हो रहा,और करे पारा बेहाल
पेड़ अगर जो नही रहेगें,सांसे भी होगीं दुश्वार
प्रश्न पूछती है धरती अब,करती है वो रोज सवाल
कब रोकोगे दोहन मेरा,खुदपर ही करके उपकार
— शालिनी शर्मा