पद्य साहित्यहाइकु/सेदोका

पर्यावरण

1.

भटक रहे 

जंगल-मरुस्थल 

जीव व जन्तु।   

2.

जंगल मिटा

बना है मरुस्थल 

आँखें हैं नम।

3.

कब उजड़े 

काँप रहे जंगल

रौद्र मानव। 

4.

बिछा पत्थर 

खोई पगडण्डी 

पाँव में चुभे। 

5.

दूषित जल

नदी है तड़पती 

प्यास की मारी। 

6.

कौन सुनेगा

उजड़ने की व्यथा

प्रकृति रोती। 

7.

ताल-तलैया

आसमान को ताके 

सूखते जाते। 

8.

नाग-सा डँसे

व्यभिचारी मानव

प्रकृति रोए। 

9.

शहर बना

पत्थरों का जंगल

मन वीरान। 

10.

पर्यावरण 

अब कैसे मुस्काए?

बड़ी लाचारी।

– जेन्नी शबनम (5.6.2023)

(पर्यावरण दिवस) 

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