कविता

जनता सयानी है तो मैं देढ़ सयाना हूं

जनता सयानी है तो मैं देढ़ सयाना हूं
जनता के जेब से पैसे निकालने में माहिर हूं
पहले काम है का बहाना बनाता हूं
बड़े साहब का नाम धौंस बीच में लाता हूं
जनता सयानी है तो मैं देढ़ सयाना हूं
ऊपर देने के नाम पर रेट खुलासा करता हूं
साहबों की धौंस बहुत बताता हूं
उनकी मिलीभगत के किस्से सुनाता हूं
जनता सयानी है तो मैं देढ़ सयाना हूं
फाइल साहब के पास है ऐसा बताता हूं
मैं तो छोटा आदमी हूं मज़बूरी बताता हूं
साहब के नाम पर लेकर खुद डकारता हूं
जनता सयानी है तो मैं देढ़ सयाना हूं
चकरे खिलाने का माइना धीरे से बताता हूं
जेब ढीली करो इशारा करता हूं
ऊपर हिस्सा देने की बात समझाता हूं
जनता सयानी है तो मैं देढ़ सयाना हूं
चकरे पे चकरे खिलाता हूं
मैं भी भ्रष्टाचार करने में उस्ताद हूं
पता नहीं चलना देता मैं भ्रष्टाचारी में घाघ हूं
जनता सयानी है तो मैं देढ़ सयाना हूं
जिसने दे दिया उनका काम फटाफट करता हूं
जिसने नहीं दिया फाइल ऊपर अटकी बताता हूं
घूस दे दिया तो काम करता हूं
जनता सयानी है तो मैं देढ़ सयाना हूं
— किशन सनमुख़दास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया