इस शहर में
बना तुम एक घर लो अभी तो इस शहर में …..
बसे हो आज सुन लो तुम्हीं मेरी नज़र में …..
यहाँ हम प्यार ही ढूँढ़ते थे भटकते ही …..
दिखाई तो नहीं गुण दिये ऐसे बशर में …..
रहोगे साथ मेरे यही सोचें अभी हम …..
गुज़रते जा रहे दिन सुनो बस इस फ़िकर में …..
चलेंगे साथ तो राह हो आसान देखो …..
अभी लो थाम ये हाथ मेरा इस लहर में …..
मनाएँ जश्न दोनों रहें जो साथ हम तो …..
अगर तुम लौट आओ मुहब्बत की डगर में …..
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’