गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

रब मिले उपहार – सी है ज़िंदगी …..
खेलते किरदार – सी है ज़िंदगी …..

ज़ख़्म मिलते ही गये हैं आज तक …..
अब कहाँ गुलज़ार – सी है जिंदगी …..

दूर रह कर ख़्वाब ही देखे सुनो …..
बन गयी अब भार – सी है ज़िंदगी …..

रोज़ तन्हा ही गुज़र जाती रही …..
( एक नाजुक तार – सी है जिंदगी ….. )

रह सके हम तो किनारे पर सदा …..
यह नदी की धार – सी है जिंदगी…..

देख कैसे अब जियें बिन प्यार के…..
चुभ रहे अब खार – सी है जिंदगी …..

दर्द मिलते ही बहे आँसू सुनो …..
अब छिने सिंगार – सी है ज़िंदगी …..

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’