हमारे संपर्क
हमारे संपर्क में खूब लोग आते हैं जो हमारे अपने होने का दावा और वादा करते हैं और बढ़-चढ़ कर बातें करते हैं लेकिन सब कुछ केवल होंठों तक सिमटा होता है, न गले में उतरा हुआ होता है न हृदय में।
कुछ निष्कपट, निरपेक्ष, सहज और सरल लोगों को छोड़ दिया जाए तो आजकल जो प्रजाति हमारे सामने, आस-पास और क्षेत्र में बिखरी पड़ी है उनमें से अधिकांश लोग केवल औपचारिकताओं की वजह से ही दिखावा करते हैं और इनका वास्तविकता से कोई रिश्ता नहीं हुआ करता। ये लोग आडम्बरी जीवन खुद भी जीते हैं और दूसरे ऐसे ही लोगों से इनका संबंध और संपर्क हुआ करता है जो खुद भी इनके ही जैसे हों।
जो लोग वास्तव में अपने संबंधियों, मित्रों तथा अच्छे लोगों के लिए कुछ कर सकते हैं अथवा करने का माद्दा रखते हैं वे लोग धीर-गंभीर हुआ करते हैं और उन्हें इस बात का ऐलान नहीं करना पड़ता कि वे औरों के लिए कुछ कर रहे हैं या कर दिया है।
ऐसे लोग श्रेय पाने की हौड़ तथा दौड़ दोनों से ही दूर रहा करते हैं और इनके लिए पूरी जिन्दगी ‘नेकी कर दरिया में डाल’ वाली कहावत सौ फीसदी खरी बैठती है।
ऐसे लोगों के लिए जीवन में अच्छे कार्य करना ही ईश्वर की प्रसन्नता का साधन होता है जिसे वे पूरी जिन्दगी अपनाते रहते हैं चाहे फिर इसका श्रेय उन्हें मिले या न मिले। न इन्हें श्रेय पाने की इच्छा होती है और न ही श्रेय पाकर इन्हें कोई प्रसन्नता। दूसरी ओर खूब सारी भीड़ ऐसी है जो श्रेय पाने के लिए ही जीवन जी रही है और हर छोटे-बड़े काम का श्रेय पाकर अत्यन्त प्रसन्नता तथा स्वर्गीय आनंद का अनुभव कर फूली नहीं समाती।
ऐसे लोग श्रेय पाने के मौकों की तलाश में गिद्ध और बगुलों की तरह दृष्टि जमाये रखते हैं और अपने आपको परोपकारी तथा सेवाभावी और समाज का सच्चा सेवक बताने की गरज से श्रेय पाने के सारे धंधों में माहिर होते हैं।
हर इलाके में कुछ ऐसे नामी लोग मिल ही जाते हैं जो इस तरह की नौटंकियों और पाखण्ड में माहिर होते हैं और यही चाहते हैं कि हजारों-लाखों की भीड़ में केवल उन्हीं के चेहरे हर कहीं दिखते रहें। ऐसे लोग ही नौटंकियां करते रहते हैं और जबरन लोकमान्य होने के प्रयासों में भिड़े रहते हैं। हालांकि इनके हाव-भाव और स्वभाव से समझदार लोगों को अच्छी तरह पता चल जाता है कि इनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अन्तर है। लेकिन समझदार लोग सब कुछ जानते-बूझते हुए भी इनके सामने कुछ नहीं कहते।
कई सारे ऐसे हैं जो उन कामों का श्रेय भी उठा लेते हैं जिनमें इनकी किसी भी प्रकार की भागीदारी या भूमिका नहीं हुआ करती है। जब हम किसी परेशानी या समस्या से घिरे रहते हैं, कोई आकस्मिक या सामयिक विपदा हमारे सामने होती है तो हमारे पास ऐसे खूब सारे लोग आते-जाते रहते हैं जो हमें सहयोग करने या कराने तथा हमारे लिए बहुत कुछ करने का भरोसा दिलाते रहते हैं।
कई सारे लोग बढ़-चढ़ कर अपने प्रति आत्मीयता जताते हैं और तब हमें भी भ्रम हो जाता है कि आखिर इनकी इतनी कृपा हम पर क्यों हो रही है। लेकिन आमतौर पर देखा जाता है कि अधिकांश ऐसे लोग सिर्फ आत्मीयता का अभिनय करते हैं, आत्मीयता से उनका कोई संबंध नहीं हुआ करता।
इस प्रकार की आत्मीयता इस किस्म के लोगों के लिए वाग्विलास से ज्यादा कुछ नहीं हुआ करती है। इस मामले में वे अच्छा ख़ासा अभिनय कर गुजरते हैं।
असल में देखा जाए तो जो लोग झूठे दिलासे, भरोसे दिलाते हैं, कुछ करने के वादे करते हैं, वे वाकई नाटक से ज्यादा कुछ होता। क्योंकि इन लोगों को न कुछ करना होता है, न किसी के लिए कुछ कर पाने की मानवता होती है।
लोगों को भरमाते हुए जिन्दगी में लोकप्रियता और समृद्धि के शिखरों को पाने के लिए उतावले ऐसे लोग हमारे इलाके में भी खूब हैं जो पसर कर चलते हुए जहाँ-तहाँ देखे जा सकते हैं।
ऐसे लोग चिकनी-चुपड़ी और मीठी-मीठी बातों के सिवा किसी के लिए कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हुआ करते हैं लेकिन जताते ऐसे हैं जैसे कि जमाने भर में इनके मुकाबले अपना हितैषी कोई और नहीं होगा।
ऐसे धूर्त्तों को समझें और जानने का प्रयास करें तथा यह प्रयास करें कि ये लोग अपनी पावन छाया या स्नेहिल आभा मण्डल से दूर ही रहें। इसी में अपनी भलाई है।