सामाजिक

समाज के लिये घातक सिद्ध हो रही आज के दौर की अश्लील फिल्में

समाज के हर वर्ग का युवा हिन्दी सिनेमा जगत से बनायी गयी फिल्मों को देखकर अधिक प्रभावित होता दिखाई दे रहा है, वर्तमान समय में चाहे छोटे पर्दे की कहानियां हों या बडे़ पर्दे की उछल कूद दोनों ही समाज को बेपर्दा करने का बीडा उठाये फिर रहें हैं। आज के फिल्म निर्माताओं के पास क्या कोई पारिवारिक विषय नही बचा है, समाज या देश के प्रति और लोगों का लगावा बढ़े ऐसे कोई विचार अब उनके पास नही बचे हैं, नब्बे की दशक तक बनी फिल्मों में अधिकांश फिल्में ऐसी होती थीं जो पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखी जा सकती थीं किन्तु वर्तमान समय में केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा अ/U के माध्यम से रिलीज की जा रही फिल्म क्या वास्तव में सभी आयु के लोग एक परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं

आज फिल्म जगत का पर्दा जितना बड़ा होता जा रहा है समाज का पर्दा उतना ही छोटा होता जा रहा है! क्या इस ओर निर्माता निर्देशकों को ध्यान नही देना चाहिए! जब फिल्मी तर्ज पर आज के समाज का हर युवा आगे बढ़ रहा है तो फिल्म में परोसी जा रही अश्लीलता की जगह मर्यादित भेश- भूसा को दिखाने में क्या हर्ज है, हो सकता है कि फिल्म के माध्यम से ही आज के युवाओं के मन मस्तिष्क में अच्छे भावों का उदय हो जाये और समय- समय पर घट रही शर्मनाक घटनाओं में कमीं होने लगे। भले ही फिल्म के शुरूवात में कह दिया जाता हो कि इस फिल्म के सभी पात्र काल्पनिक हैं इसका किसी घटना व वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नही है, जिस फिल्म का वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नही रहता आज के समाज में उसकी ही वास्तविकता देखने को मिल रही है। समाज के कुछ लोग जब अश्लीलता की आलोचना करने लगते हैं तो इनके समर्थक आलोचकों की नजरिया पर प्रहार करना शुरू कर देते हैं जब पाठशाला में क से कबूतर पढ़ाया जायेगा तो बच्चा क से कमल कहां पढ़ पायेगा।

हम कैमरे के पीछे वाले जागदूरों की जादूगरी को नमन करते हैं! क्या कमाल का जादू दिखाते हैं और क्या सफाई से अश्लीलता परोस जाते हैं! इतनी शालीनता से अश्लीलता परोसने का हुनर उपर वाले ने इनके अन्दर कूट-कूट कर भरा है न जिस्म की कोई इज्जत न मन का कोई मोल शर्म को चीरते हुये दृष्य और अर्थहीन शब्दों से भरा संवाद जो बड़े आराम से पानी में आग लगाने का कार्य करता है, धन्य हैं ऐसे जादूगर जो बिना दिशा शूल का विचार किये समाज को एक ऐसी दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं जिसकी कोई परवाह ही नही है। कुछ लोग चंद पैसो की खातिर कला को कलंकित भी बड़ी ही इज्जत के साथ करते हैं और भारी भरकम इज्जत के मालिक होने के नाते अपनी छोटी मोटी बेजज्ती को नजरांदाज करके बेहूदगी से लबालब परिधानों में लिपट कर भद्दे से भद्दा दृश्य प्रस्तुत करके कहानी की इति श्री करके निकल जाते हैं उसके बाद सिलसिला शुरू होता है कहानी के अति का एवं समाज के लोगों की मानसिकता पर प्रहार करने का और पूरी फिल्म में दिखाये गये हीरो हिरोइन को वास्तव में हीरो हीरोइन मान लेने का जबिक सच यह है कि सारे हीरो हीरोइन सिर्फ कैमरे के सामने तक ही रहते हैं मेकअप उतरने के बाद इनको भी भूख प्यास सताने के साथ – साथ कल की चिंता भी लदी रहती है।

क्या! पहले जैसी फिल्म आज का समाज देखना नही चाह रहा है या फिर सिनेमा जगत दिखाना नही चाह रहा है क्या परिवारिक और संस्कारिक कहानियां लिखने वाले लोग नही बचे या इन लोगों को कोई तवज्जो नही दी जा रही है क्या पर्दे को और उंचाई तक ले जाने के लिये बेपर्दा होना जरूर हो गया है, ऐसा बिल्कुल नही है जो दिखता है वही बिकता है तो हम संस्कारिक, पारिवारिक अच्छे भावों को प्रकट करने वाली फिल्म क्यों न दिखाऐं जब तक केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड में अ/U के साथ साथ अ/व A/U एवं व/U को प्रमाणित किया जायेगा तब यह सिलसिला चलता रहेगा जब तक देश में गंगा बहेगी तब तक लोग पाप करके नहाते रहेंगे फिल्में जहां से भी बनती हों जो भी बनाते हों उनके भी तो मां बाप बेटी बहन भाई होते होगें वो भी अपने परिवार को सभ्य संस्कारी बनानें की कोशिश करते होगें क्या बुराई बढ़ाने की बजाय बुराई मिटाने के लिये फिल्म नही बनायी जा सकती हैं।

राजकुमार तिवारी ‘राज’
बाराबंकी उ0प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782