ग़ज़ल
सितार है टूटा हुआ इस दिल के तारों को ना छेड़,
नाम लेकर इश्क का तू गम के मारों को ना छेड़
रूठ जाएँगीं तो वापिस लौट कर ना आएँगीं,
छोड़ दे ओ बागबां जाती बहारों को ना छेड़
कोई जाकर कह दे अपने शहंशाह-ए-वक्त से,
खाक कर देंगे तुम्हें हम खाकसारों को ना छेड़
रहने दे जलवाफरोशी कायम इनकी सुबह तक,
ऐ घटा काली खूबसूरत सितारों को ना छेड़
हैं ज़रूरी जीने की खातिर कई खुशफहमियाँ,
दर्द होता है किसी के ऐतबारों को ना छेड़
आखिर तुझे दम तोड़ना है मेरी ही आगोश में,
दरिया है तो क्या हुआ अपने किनारों को ना छेड़
— भरत मल्होत्रा