हास्य व्यंग्य

दिन को अगर रात कहो…

देश चाटुकारिता के स्वर्ण युग से गुजर रहा है। अकबर-बीरबल के एक किस्से के एक किस्से के अनुसार अकबर द्वारा बैगन की बुरा कहने पर बीरबल ने सौ बुराइयाँ निकाल दी थीं और जब अकबर ने उसी बैगन की तारीफ की तो बीरबल ने बैगन की शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए थे। आज भी सत्ता और विपक्ष में वही स्पर्धा जारी है। उनके नेता एक बात कह दें तो दरबारियों की पूरी फौज उसे सच साबित करने पर आमादा हो जाती है। अब वह बात सात समंदर पार कही गयी हो या देश की सीमा के अंदर।

वास्तव में चापलूसी एक कला है। जो सिखाई नहीं जाती। ये जन्मजात प्रतिभा है। अभिमन्यु की तरह माँ के गर्भ में प्राप्त हो जाती है। किसी विश्विद्यालय या गुरुकुल में इसके उस्ताद या गुरू नहीं मिलेंगे। कोई ट्यूशन की आवश्यकता नहीं। बस आपको दिन को रात और रात को दिन सिद्ध करने की कला आना चाहिए। बदसूरत प्रेमिका में भी प्रेमियों को पद्मिनी के दर्शन आदिकाल से होते रहते हैं। पराक्रमी प्रेमी यदि आसमान के तारे तोड़कर ले आते तो यकीन मानिए आसमान रेगिस्तान हो जाता। देश में विधर्मी प्रेमियों की बाढ़ आ गई है। प्रेम की नदी में धार्मिक प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं की लाशें बहाते हैं और हमें कैंडिल मार्च निकालने का अवसर देते हैं। इससे देश में एकता और सौहार्द्र का वातावरण बनता है। देश में धर्म, प्रेमियों के कारण टिके हैं, भक्तों और भगवान के कारण नहीं। धार्मिक वातावरण बनाने और बिगाड़ने में प्रेमी-युगल का अद्वितीय योगदान है।

राजा की चापलूसी और प्रेमिका की चापलूसी में अंतर है। लोकतंत्र में चापलूसी के लिए आपको ‘चमचा या भक्त’ होना जरूरी है। प्रेमी के साथ ये लफड़ा नहीं है। अच्छा चाटुकार ही अच्छा प्रेमी हो सकता है। वह किसी को भी प्रेमिका बनाकर दिन को रात कह सकता है। राजनीति में चाटुकारिता करने पर छुटभैये नेता से मंत्री पद तक पाया जा सकता है। प्रेम में चाटुकारिता सफल होने पर आपको ‘पति’ पद पर प्रतिष्ठित कर देती है और असफल होने पर जूते पड़वा देती है। दोनों ही दशा में आपका पराक्रम महत्व रखता है।

चाटुकारिता का संबंध चाटने से है। चाटुकार चाटना ऊपर से शुरू करता है। पहले दिमाग चाहता है फिर तलवे चाहता है। आखिर में चाटने में इतना मस्त हो जाता है कि थूककर चाटना शुरू कर देता है। तो पक्ष-विपक्ष के चाटुकारो ! चाटो। खूब चाटो। लेकिन दिन को रात और रात को तो कम से कम दिन मत कहो। वरना इस देश को बर्बाद करने के लिए विभीषणों और जयचंदों की ज़रूरत नही पड़ेगी। तुम्हीं इस देश का बंटाढार करने के लिए काफी माने जाओगे।

— शरद सुनेरी