सूरज दादा
सूरज दादा सुरज दादा
सुनलो न हमारी पुकार
गर्मी-लू से झूलस रहे हैं
कराओ वर्षा की फुहार।
जीव-संकुल व्याकुल हैं
इन सब का करो उद्धार
तन-मन को शांति मिले
सुनलो न हमारी गुहार।
ताल-तलैया सुख चुके है
नदियाँ कर रहीं चित्कार
कल-कल की सस्वर गूंजे
ताट उपवन से हो श्रृंगार।
हरियाली भी हलाक़ान है
जंगल कानन हुई वीरान
अब तो बादल बरसाओ
खुशी से झूमें सारा जहान।
— अशोक पटेल “आशु”