मुक्तक/दोहा

हर दिन मां के नाम

नहीं एक दिन मात्र बस, हर दिन माँ के नाम।
माँ से ही जीवन मिला,माँ से सब अभिराम।।
वसुधा-सी करुणामयी,माँ दृढ़ ज्यों आकाश।
माँ शुभ का करती सृजन,करे अमंगल नाश।।
माँ रोटी,माँ दूध है,माँ लोरी,माँ गोद।
माँ सुख का आधार है,माँ से ही आमोद ।।
माँ सुर,लय,आलाप है,अधरों पर मुस्कान।
माँ सम्बल,उत्साह है,है हर शय की शान।।
माँ सचमुच में देव है,लगती है वह ईश।
माँ के चरणों में झुकें,भगवानों के शीश।।
अवतारों में माँ प्रथम,करती है कल्याण।
माँ से ही उत्थान है,बल पाते हैं प्राण।।
माँ है तो उजियार है,माँ है तो है हर्ष।
माँ है तो हर जीत है,नहीं कठिन संघर्ष।।
माँ जीजा,पुतली वही,नाम यशोदा जान।
कौशल्या बन राम से,जनती पुत्र महान।।
माँ है तो संपन्नता,संतति नित धनवान।
माँ से ही तो स्वर्ग है,माँ से सुत बलवान।।
माँ बिन रोता आज है,होकर ‘शरद’अनाथ।
सिर पर से जो उठ गया,आशीषों का हाथ।।
— प्रो. (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com