बाल कविता

सूरज दादा

सूरज दादा सुरज दादा
सुनलो न हमारी पुकार
गर्मी-लू से झूलस रहे हैं
कराओ वर्षा की फुहार।

जीव-संकुल व्याकुल हैं
इन सब का करो उद्धार
तन-मन को शांति मिले
सुनलो न हमारी  गुहार।

ताल-तलैया सुख चुके है
नदियाँ कर रहीं  चित्कार
कल-कल की सस्वर गूंजे
ताट उपवन से हो श्रृंगार।

हरियाली भी हलाक़ान है
जंगल  कानन हुई वीरान
अब  तो बादल  बरसाओ
खुशी से झूमें सारा जहान।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578