सवर्ण
गरीबी और भूख से व्याकुल, बेरोजगारी से परेशान, एक अदद नौकरी के लिए एक दफ्तर और दूसरे और फिर तीसरे दफ्तर भटकते-भटकते रामदयाल पाण्डेय अंततः मृत्यु को प्राप्त हुआ।
मृत्यु देवता ने उसके सुकर्मों को देखते हुए कहा- ‘‘तुमने पिछले जनम में बहुत अच्छे काम किए हैं। इसलिए तुम्हें फिर से एक बाह्मण परिवार में जन्म लेने का सौभाग्य प्रदान किया जा रहा है।’’
रामदयाल पाण्डेय मृत्यु देवता के पैरों में गिर पड़ा। कातर भाव से बोला- ‘‘मुझे ऐसा सौभाग्य नहीं चाहिए महाराज ! यदि मैंने कुछ अच्छे कर्म किए हैं, तो उसे देखते हुए कृपया मुझे किसी अच्छे खाते-पीते अनुसूचित जाति या जनजाति परिवार में जन्म लेने दीजिए ताकि फिर से मुझे बेरोजगारी का सामना करना न पड़े।
-डाॅ. प्रदीप कुमार शर्मा