गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अभी इश्क़ का तो मज़ा ही चखा है
सुनो दिलजले का यही मामला है

मिले ज़ख़्म कितने बताया नहीं जो
रहा दर्द कितना हमीं ने सहा है

बनी ज़िंदगी ये बड़ी खूबसूरत
उठाया मज़ा जो न किसकी ख़ता है

रहा ये ज़माना सदा शत्रु बन कर
कभी भी किसी को न दी ही दुआ है

चले जो कभी लीक पर ही नही वे
करें क्यों भला आज कैसा गिला है

कदम से कदम आज मिला के चले हैं
इसी कर्म में तो उसी की रज़ा है

किया प्यार हमसे बहुत हैं बताते
सुनो आज आँखों बसी ही हया है

ग़ज़ल जो सदा ही सुनाते रहे थे
अभी तक उसी का चला सिलसिला है

अभी दे सजा वो यही आशियाना
उन्हीं का सुनो आज सपना सजा है

नज़र ही लगे क्यों सनम को कभी भी
छुपा के यूँ पलकों में उनको रखा है

बिखरने दिया ही न हमको कभी भी
सहारा उन्होंने अभी तक दिया है

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’