गीत/नवगीत

गीत “तुकबन्दी से होता गायन”

गीत “तुकबन्दी से होता गायन”
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

वाणी से खिलता है उपवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन

शब्दों को मन में उपजाओ
फिर इनसे कुछ वाक्य बनो
सन्देशों से फलता गुलशन
स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन

स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
तुकबन्दी मादक-उन्मादी
बन्दी में होती आजादी
सुख बरसाता रहता सावन

स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
आता नहीं बुढ़ापा जिसको
तुकबन्दी कहते हैं उसको
छाया रहता जिस पर यौवन

स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
दुर्जन के प्रति भरा निरादर
महामान्य का करती आदर
तुकबन्दी से होता वन्दन

तुकबन्दी मनुहार-प्यार है
यह महकता हुआ हार है
तुकबन्दी होती चन्दन-वन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन

शायर की यह गीत–ग़ज़ल है
सरिताओं की यह कल-कल है
योगी-सन्यासी का आसन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन

तुकबन्दी बिन जग है सूना
यही उदाहरण, यही नमूना
तुकबन्दी में है अपनापन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन

तुकबन्दी बिन काव्य अधूरा
मज़ा नहीं मिलता है पूरा
तुकबन्दी से होता गायन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन

अगर शान से जीना चाहो
तुकबन्दी को ही अपनाओ
खोलो तो मुख का वातायन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है