पर्यावरण

अभी भी वक्त है जो पृथ्वी के साथ-साथ पूरी मानवजाति को बचाया जा सकता है

जो चाहिए ओ सब कुछ दिया है मैंने फिर इतनी बेरूखी क्यों हर कदम पर वफा करती आयी हूं फिर मुझसे बेवफाई क्यों फूल पत्तियों को मैंने भांति-भांति के रंगों से सजाया है वनों जंगलों को हरा भरा रखने के लिये नदियों की बांहे फैला कर अपना प्यार लुटाया है किसी भी मानव को सांस लेने में कोई तकलीफ न हो इसलिये मैंने प्राणदायिनी वायु का संचार किया है साथ ही साथ भिन्न भिन्न स्थानों को रंग बिरंगे फूलों से महकाया है और अपनी सारी सुन्दरता हर एक प्राणी के लिये न्योछावर कर दी है फिर भी आज सभी लोगों ने मुझे अधमरा करके छोंड़ दिया है क्या कमीं रह गयी थी मुझमें! जो बिना सोंचे समझे आज का इंसान रोज मेरे सीने में नया- नया खंजर उतार रहा हैं। मैं प्रकृति हूं मेरी प्रवृत्ति यही है कि लोग कितनी भी जफा करें मुझसे फिर भी मैं सभी से वफा ही करती रहूंगी,इंसानों की क्रूरता से मुझे जरा सा भी आफसोस नही है, अफसोस है तो सिर्फ इस बात का कि आज का इंसान अपने लिये जो कुछ भी कर रहा है वह कल उसके लिये ही बहुत घातक सिद्ध हो सकता है तब न तो आफसोस करने का समय बचेगा और न ही किसी के पास कुछ संभालने की क्षमता ही बचेगी क्योंकि जो इंसान जिस जगह पर गिरेगा उस जगह पर उसका खुद के द्वारा बनाया गया गड्ढा होगा। अपने अपने गड्ढे में सभी गिरेगें कोई किसी को बचाने वाला नही होगा क्योंकि उस वक्त मैं इंसानों की क्रूरता का शिकार होकर सरसैय्या पर पड़ी अंतिम सांसे ले रही होंगी।

जैसे- जैसे इस पृथ्वी के इंसान बदलते गये वैसे- वैसे मैंने भी उनकी सुख सुविधा का ख्याल रख कर अपने स्वाभाव में बदलाव करती गयी एक समय था कि जिस स्थान पर उसर होता था वहां पर अनाज तो दूर जंगली खास भी नही उगती थी किन्तु मेरा स्वभाव बदलने के कारण आज उसर में भी फसल लहलहाने लगी है उसके बावजूद आज का इंसान मेरे आभूषणों को क्षति पहुंचाने में रातेदिन लगा हुआ है जंगलों और पेंड़ों पर इस कदर टूट पडा है कि आज वन्य जीवों का सहारा भी छिन गया है धरा के समस्त प्राणी मेंरे अपने हैं और सभी का जीवन चक्र से कोई न कोई सम्बन्ध है आज का इंसान इतना स्वार्थी हो गया है कि अपनी सुख सुविधा के आगे दूसरों की कोई परवाह नही करता है 1990 के बाद से वायुमण्ड में विचरण करने वाले गिद्ध अचानक गायब होंने लगे जिस पर न तो किसी ने विचार किया और न ही किसी ने आफसोस किया जबकि गिद्धों का गायाब होना इंसानों को सचेत करने का पहला संकेत था किन्तु आज समय उससे भी बुरा है हमारे वातावरण में मौजूद ऐसे बहुत से पक्षी थे जो आज वायुमण्डल से गायब हो चुकें हैं जिसका अफसोस किसी को नही है।

एक वक्त ऐसा भी मेरी नजरों के सामने गुजरा है जब यह पृथ्वी पूरी हरी भरी थी किसी प्रकार का कोई प्रदूषण मेंरे वक्ष पर नही था हर तरफ हरियाली और रंग बिरंगे फूलों से पूरी धरती सजी हुयी थी कमीं थी तो इस पर इंसानों की! जीव के नाम पर हर तरफ विशालकाय डायनासोर ही निवास करते थे और ये इतने क्रूर थे कि अपने आगे किसी दूसरी प्रजाति के जीवों को पनपने ही नही दे रहे थे इनमें से कुछ थलचर थे तो कुछ नभचर भी थे ये डायनासोर मेरे बनाये हुये सुन्दर बाग बगीचे में खूब उधम मचाने लगे थे मेंरे आंगन का हर कोना इनके आतंक से त्रस्त हो चुका था और मेरी हालत भी एकदम आज के जैसी ही हो चुकी थी मेंरा अस्तित्व पूरी तरह से खो चुका था और मैं खुद को असहाय महसूस कर रही थी और पृथ्वी के बारे में कुछ भला सोंचने और समझने की क्षमता मेंरी क्षींण हो चुकी थी फिर एक दिन अचानक आसमान की ओर से आग के गोलों की बरसात होने लगी धरती के कोने- कोने में आफरा-तफरी का महौल उत्पन्न हो चुका था डायनासोरों को कहीं भी छुपने और बचने का स्थान नही मिल रहा था और जो उनको मिल रहा था वह उन्ही के कर्मों का फल था, उन्ही के कर्मों के कारण मेरी भी दुर्गति हो गयी और मुझे बड़ी गंभीर यातनाएं मिलने लगी जिसके कारण मेंरा पूरा बदन जीर्ण शीर्ण हो चुका था और मैं भी पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गयी थी एक बार फिर से मेरे चारों ओर एक घना अंधेरा और बीरापन छा गया पूरी धरती बंजर हो गयी दूर -दूर तक सायं-सायं के अलावा कुछ भी नही था, कोई जीव जन्तु पेंड़ पौधा मेरी मिट्टी में नजर नही आ रहा था मैं एकदम जली भुनीं बुझे हुये चैले की तरह पड़ी-पड़ी अपने दिन बहुरने का इंतजार कर रही थी।

चिरकाल से आसमान की ओर निहारते- निहारते मेरी आंखे भी सूख चुकी थीं, फिर एक दिन नील गगन को देखकर मेंरी आंखों को एक उम्मींद की किरण नजर आई और उस किरण से मेरे अरमानों के पंख निकलने वाले थे आसामान के सीने में मंडराती हुयी बदली देखते ही देखते पूरे गगन पर छा गयी और मेरे सीने पर वह मूसलाधार बरसने लगी जिससे मैं एकदम तर-ब-तर हो गयी, और सदियों से अकड़े हुये बदन में नर्मी आ गयी जिसके कारण मेरी चेतना लम्बे समय के बाद होश में आयी और एक बार फिर से मैं अपने आप को एकदम नई नवेली महसूस कर रही थी मेरे अन्दर एक नये उर्जा का संचार हो चुका था पूरे जोश से मैं फिर धरती को हरा करने के लिये लालायित हो रही थी, धीरे-धीरे समय गुजरता गया चांद सूरज मुझे और निखारने में जुटे हुये थे इनकी धूप और झांव के साये में मै अपने आपको बहुत सुन्दर और सुगन्धित महसूस कर रही थी अब कई प्रकार के जीव मेरी गोद में अठखेलियां करने गले थे शायद यही ओ समय था इंसानो के अस्तित्व में आने का धीरे-धीरे मेंरे हर कोने में जीवन चक्र बनता गया, पौधों से लेकर जीव जन्तु एक दूसरे के पूरक होते गये फिर एक दिन ऐसा आया कि मेरे आगोश में मानवजाति पनपने लगी मैने भी मानवजाति का रहने से लेकर खाने पीने तक पूरा इंतजाम कर रखा था, मेरे फूल फल पत्तियों को खाकर पूरी मानवजाति मेंरे आंगन में अब दो पैरों पर खड़े होकर चलना सीख चुकी थी अब ये मानव मेरे बहुत सहायक सिद्ध हो रहे थे ज्यों-ज्यों इनका शारीरिक विकास हुआ त्यों-त्यों इनका मानसिक विकास भी होना शुरू हो गया। आज का इंसान जो कुछ भी है वो मेरी नजरों के सामने से हो कर ही गुजरा है किन्तु अफसोस इस बात का है कि जो मेरी कदर करना जानते थे वह मेरी गोद में समा चुके हैं और जो अब हैं वह मेंरी कोई कदर नही कर रहें है और न ही मेरी कोई परवाह करते हैं वर्तमान का मानव एकदम डायनासोरों की तहर ही मेरे साथ बर्ताव कर रहा है इसलिये मुझे आज इस बात की चिंता खाये जा रही कि उस दौर में इस धरती पर सबसे खतरनाक प्राणी डायनासोर हुआ करते थे और अब इस दौर में सबसे खतरनाक प्राणी इंसान हो चुका है कहीं न कहीं मेरे मन के अन्दर इस बात की आशंका हरदम बनी रहती है, कि जो दौर मुझ पर बीत चुका है उसकी पुर्नावृत्ति फिर होने वाली है जिसका पूर्ण रूप से जिम्मेंदार आज का इंसान है जो प्रकृति कि चिन्ता किये बगैर आज का हर इंसान ऐसे मुहाने पर जा पहुंचा है जहां से बच पाना असंभव है क्योंकि ये चांद सूरज गवाह हैं कि जब-जब मुझे अंदेखा किया गया है तब- तब यहां पर उथल पुथल हुआ है, ओ तो जानवर थे जो जागरूक नही थे किन्तु आज का मानव उन जानवरों से भी बदत्तर सुलूक मेरे साथ करने लगा है आज का इंसान डायनासोरों से भी ज्यादा आतंकी नजर आने लगा है।

इसी गति से यदि मेरी दुर्गति होती रही तो एक दिन ओ जरूर आयेगा जिसकी कल्पना अभी तक किसी ने नही की होगी, और मैं भी यही सोंच रही हूं कि आज के मानव से अच्छे तो आदिमानव थे जो शिक्षित और जागरूक नही थे किन्तु वह मेरे अनुरूप जीवन ब्यतीत कर रहे थे और मेरे बनाये गये वातावरण में कदम से कदम मिला कर चल रहे थे भले वह पेंड़ो और गुफाओं में रहकर अपना जीवन बिता रहे थे किन्तु मेरे सम्मान का शीशमहल उनके अन्दर पूरी तरह से बुलन्द रहता था वे अनपढ़ ही सही किन्तु मेरे द्वारा प्रदान की गयी सम्पदाओं से वे संतुष्ट थे और रात दिन की समझ रखते थे रोशनी उनको सिर्फ सूरज से मिलती थी और चांदनी उनको चांद से मिलती थी इसके सिवा उनके पास रोशनी का कोई दूसरा जरिया नही था वे भले ही नंग धड़गं घूमते थे किन्तु मेरी आबरू का वह पूरा ख्याल रखते थे वह पूरी तरह से मुझ पर निर्भर थे इसलिये सभी निरोगी थे और एक लम्बी उम्र जीने के बाद ही मेरी गोद में समाते थे। वर्तमान का मानव अत्याधिक शिक्षित और जागरूक हो चुका है और वह अपने मद में मस्त होकर वातावरण की परवाह किये बगैर जंगलों को काट कर कंकरीट का जंगल उगाने में रातोदिन लगा हुआ है, जबकि वह यह नही सोंच रहा कि आज मेरे साये में ऐसे बड़े बडे़ महल सूने पड़े हैं जिन में दिया जलाने वाला आज कोई नही है उस खण्डहर इमारत में वन्य जीव व परिदों का आज घरौंदा नजर आ रहा है, अभी भी वक्त है जो पृथ्वी के साथ-साथ पूरी मानवजाति को बचाया जा सकता है किन्तु आफसोस इस ओर कोई ध्यान नही दे रहा है आज हवा विषैली होती जा रही है प्राणदायनि वायु भी दम तोड़ रही है, सूर्य की तपन जिस्म जलाने लगी है आज को देख कर लग रहा है कि ये उंची- उंची अट्ल्लिकाएं मानव का साथ नही दे पायेंगी, एक दौर फिर आयेगा जब इंसान जमीन के अन्दर रहना शुरू कर देगा इसका सबसे बडा कारण यह होगा कि मेरे वातावरण में इलेक्ट्रिक रेडियेशन का संचार जिसके कारण आज पक्षी गायब हो गये हैं और लगातर इलेक्ट्रिक रेडियेशन की क्षमता का वितस्तार किया जा रहा है जिसका दुष्परिणाम धरती के समस्त इंसानों को भोगना पडे़गा एक दिन इनका शरीर इस प्रकार की किरणों को सहन करने से जवाब दे देगा साथ ही साथ जीवन जीने के लिये वह निश्चित मात्रा में कृत्रिम आक्सीजन अपने पास रखेगा परन्तु यह सब कुछ ज्यादा समय के लिये नही सहायक को सकते हैं यदि आज भी धरती की समस्त मानवजाति सचेत नही हुयी तो एक दिन निश्चित है कि इसे बंजर व बियाबान बनने से कोई नही रोक पायेगा इंसानों के द्वारा किये गये बर्ताव का खामियाजा पूरी धरती के प्राणियों को भोगना पड़ेगा, जिस तहर से आज बीमारी की बैतरणी बह रही है उसी तरह से एक दिन तबाही की गंगा बहेगी।

राजकुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उत्तर प्रदेश

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782