जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि
है बात तो सच्ची कितनी
जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि
जहाँ सूरज की किरणें
जहाँ हवा के झोंके
जहाँ सागर की लहरें
जहाँ बरखा की बूंदें
जहाँ धूप की आंच
जहाँ सांझ की शीतलता
जहाँ चांद की चाँदनी
जहाँ टिमटिमाते सितारे
भले ही न पहुँच पाएं
कवि की कल्पना
कवि की सोच
कवि के एहसास
कवि के भाव
कवि के शब्द
अवश्य ही पहुँच जाते हैं
जैसे फूलों की सुंगध
जैसे पेड़ पौधों की हरियाली
जैसे मिट्टी की सौंधी महक
जैसे सांसों में घुलती हवा
इसलिये सच ही है
जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि ।।
— मीनाक्षी सुकुमारन