धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

शिवत्व को अपनाए वही शिव उपासक

भगवान शिव को समर्पित यह श्रावण केवल शिव साधना के विभिन्न आयामों के निर्वाह मात्र या आयोजनों में रमे रहने भर का माह नहीं है बल्कि एक संदेश है जो सृष्टि के कल्याण क लिए सर्वस्व समर्पण के लिए मंगलकारी संदेश भी संवहित करता है।

व्यष्टि और समष्टि के उद्धार तथा इनके उपयुक्त संचालन, संपादन और बहुआयामी मंगल की वृष्टि के लिए जरूरी कारकों के बारे में आत्मचिंतन करने का अवसर है यह पूरा का पूरा माह।

शिवत्व को आत्मसात करें

शिव अर्थात् सत्यं, शिवं सुन्दरं का मूर्त्तमान स्वरूप प्रकटाने का महानतम सामर्थ्य जगाने वाला तत्व, जिस पर टिका हुआ है पिण्ड और ब्रह्माण्ड। इस माह में हर दिन होने वाली शिव उपासना का प्रत्येक अनुष्ठान और कर्म अपने आप में वैज्ञानिक धारणाओं को लिए हुए है तथा प्रत्येक विधा से संकेतित होता है कोई न कोई संदेश।

हम बरसों से शिवलिंग पर पानी, दूध, विजया, शहद इत्यादि द्रव्यों का अभिषेक करते आ रहे हैं लेकिन इसके मर्म को समझने की कोशिश हमने कभी नहीं की।

शिव और जीव के मध्य बने सेतु

शिवलिंग पर जब भी अभिषेक हो या जल चढ़ाएं तब यह भावना रखें कि शिव और जीव के बीच का महीन सेतु बन रहा है और वह धार शिव एवं जीव के मध्य ऊर्जा संचरण का वह सशक्त दैवीय एवं दिव्य माध्यम बनी हुई है जिससे ऊर्जा के प्रवाह का आनंद पाने के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता है।

इसमें एकाग्रता, एकतानता, समर्पण और श्रद्धा के साथ कई बातों का समावेश है जो हमें शिवत्व के निकट ले जाने में समर्थ है और एक समय ऐसा भी आ जाता है जब शिवभक्ति करते हुए हमें अपने आप में शिवत्व का अहसास होने लगता है।

समर्पण और श्रद्धा ही है मूलाधार

दुनिया के समस्त द्रव्य शिव आराधन के लिए समर्पित कर देने की जो दिली भावना रखता है वस्तुतः वही व्यक्ति शिवत्व को पाने का अधिकारी है। औघड़दानी भोले बाबा का स्वभाव फक्कड़ है और उनके पास वह सब कुछ नहीं दिखता जो आज आदमी की इच्छाओं में होता है लेकिन अपने पास शून्य होने के बावजूद शीघ्र प्रसन्न होने वाले भगवान आशुतोष शिव वह सब कुछ दे सकते हैं जो हमारे मन-मस्तिष्क और कल्पनाओं से भी परे होता है।

शिवत्व की शुरूआत शून्यत्व से ही होती है जब हम मन-मस्तिष्क और हृदय से पूरी तरह शून्य और मुक्त हो जाते हैं। इसीलिए शिव महिमा में कहा गया है कि शिव श्मशानवासी हैं और उन्हें श्मशान में ही रहना पसंद है।

इसका आशय यह है कि यदि हम शिव को अपने हृदय में प्रतिष्ठित करना चाहें तो हृदय को श्मशान अर्थात समस्त प्रकार की कामनाओं से शून्य बनाएं तभी शिव का आवाहन कर उन्हें प्रतिष्ठित करने का सामर्थ्य पा सकते हैं।

औरों के लिए जीने का माद्दा पैदा करें

आज हम श्रावण माह भर शिव के नाम पर कितने ही जाप कर लें, अभिषेक कर डालें, रात-रात भर जागरण, भजन-कीर्तन में रमे रहें और भोलेनाथ को रिझाने के लिए सारे आडम्बरों और पाखण्डों, अनुष्ठानों और कथा-सत्संग एवं आराधना के सभी उपायों का सहारा ले लें, मगर यह सब तब तक व्यर्थ है जब तक हमारे दिल में शिवत्व की भावना न हो।

शिवत्व का सीधा संबंध है अपरिग्रह, द्वन्द्वमुक्त, उदार, प्राणीमात्र के प्रति संवेदनशील, सदाचारी, परोपकारी, सेवाभावी और मानवता के लिए समर्पित होना। इनमें से एक भी गुण अपनाने में हमें मौत आती है, और बातें झाड़ते रहे हैं शिवत्व की, भोलेनाथ को खुश करने की। शिव के व्यक्तित्व, जीवन, परिवेश और गूढ़ रहस्यों को समझे बिना शिव तत्व की बातें करना निरर्थक ही है।

प्रकृति का सामीप्य ही देता है शिव की निकटता

शिव कैलाशवासी हैं जहाँ प्रकृति का उन्मुक्त विलास और स्वच्छंद वैभव पसरता है। जीव तभी शिवत्व की प्राप्ति कर सकता है जब वह प्रकृति के करीब हो।

आज हमने प्रकृति को रहने ही कहाँ दिया है, बस्तियों के जंगल बसा लिए हैं। प्रकृति के दर्शनों के लिए हमें मीलों दूर जाना पड़ रहा है। न ताजी हवा रहने दी है, न आँखों को सुहाने वाली हरियाली। जल, जंगल और जमीन का हमने जो हश्र किया है उसे देखते हुए शिवत्व पाने की कल्पना बेमानी ही है।

प्रकृति से जीव जितना दूर जा रहा है उसकी समस्याएं उतनी ही ज्यादा बढ़ती जा रही हैं, स्वास्थ्य का कबाड़ा हो गया है और नाश्ते की तरह गोलियां लेने को विवश हैं।

जीव को जड़त्व से मुक्त करें

हालात ये हो गए हैं कि शिवत्व तो मिल नहीं पा रहा है और उसके बदले जीवन में जड़त्व, मूर्खत्व और अंधत्व घर करता जा रहा है। कुछ बरस पहले की ही बात है जब सारी खुली जमीं और आसमाँ हमारा था और उसका अपना आनंद था जिसे सभी लोग मिल-जुल कर उपभोग कर प्रसन्नता का अनुभव किया करते थे।

अब वो सब समाप्त हो गया है। आज न खुला आसमाँ हम देख पा रहे हैं, न हमारे आस-पास खुली जमीं है। घरौंदों और खंदकों में दुबके जानवरों की तरह हमारी कूप मण्डूकों जैसी दशा होती जा रही है। फिर प्रकृति से दूरी बनाए रखकर हम शिवत्व की कल्पना कैसे कर सकते हैं ? शिवत्व को पाने के लिए आक्षितिज पसरी धरा और उन्मुक्त आकाश का दर्शन और अनुभव जरूरी है।

समन्वय और सौहार्द पर ध्यान दें

शिवत्व को पाने के लिए यह भी जरूरी है कि हम समन्वय, सौहार्द और समरसता को अपनाएं। शिव के पास जो गण, अनुचर हैं, विभिन्न प्रकार के जानवर हैं और प्रकृति है, उनमें सभी विपरीत स्वभाव के होने के बावजूद सब शिव के सान्निध्य में एक साथ रहते हैं और प्रसन्न रहते हैं।

शिव परिवार के ये सभी तत्व विभिन्न रसों और स्वभावों के परिचायक हैं। इन सभी प्रकार के स्वभावों से भरे गण समुदाय, लोगों और जानवरों के बीच समन्वय, सौहार्द और शांति स्थापित करने की वजह से ही शिव को पशुपतिनाथ के नाम से संबोधित किया जाता है।

आज जो लोग शिव उपासना से शिवत्व पाने के लिए इच्छुक हैं उन्हें अपने भीतर पशुपतिनाथ का साधक होने का माद्दा और गर्व पैदा करना होगा क्यांकि मौजूदा युग में अपने आस-पास पशुता से भरे लोगों और पशुओं की संख्या खूब ज्यादा बढ़ी हुई है।

पशुपतिनाथ के साधक होने का गर्व रखें

कोई छोटा पशु है, कोई बड़ा। कोई लोकप्रिय पशु है, कोई गुमनामी के अंधेरों में जीने वाला। कई किस्मों से पशुओं से घिरा हुआ है आज आदमी। पहले सिर्फ नाखून, सिंग, खुर और नैसर्गिक अस्त्रों भरे पशु होते थे। आज के दोपायों में अलग किस्म के हिंसक अस्त्र हैं। कहीं पॉवर है, कहीं आसुरी वृत्तियाँ, और कहीं अंधा मोह, आसक्ति और पशुबुद्धि चमचों-चापलुसों और निरन्तर जयगान करते हुए भरमाने वालों का अभेद्य सुरक्षा घेरा। फिर कई पशु दूसरों के दिमाग पर चलने वाले हैं।

आदमियों में भी पशु बुद्धि वाले लोग खूब ज्यादा हैं और ऐसे में इन तमाम प्रकार के पशुओं पर नियंत्रण तथा उन्हें साथ लेकर चलने का हुनर विकसित करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है पशुपतिनाथ के उपासक होने का गर्व। तभी हम अपने आस-पास के पशुओं के जमघट पर नियंत्रण पा सकते हैं।

भगवान भोलेनाथ की उपासना करने का यह अर्थ नहीं है कि ललाट पर भस्म त्रिपुण्ड लगाएं, भस्मी रमाए बैठें, भंग छानें, गांजा फूंकें या जोरों से बम-बम, हर हर महादेव, ऊँ नमः शिवाय के उद्घोषों में ऊर्जा लगाएं, कावड़यात्राओं में कावरें ले-लेकर पब्लिसिटी और स्वाँग रचते रहें। इनमें सच्चे शिवभक्तों पर ही शिव प्रसन्न होते हैं, इस बात का ख्याल हम सभी को हर पल रखना चाहिए।

जीवन के हर व्यवहार में शिवत्व जरूरी

हमारी शिव उपासना तभी सफल हो सकती है जब हम जीवन में पवित्रता लाएं, भ्रष्टाचार, बेईमानी और व्यभिचारों से दूर रहें, कामनाओं से शून्य होकर अनासक्त जीवन जिएं, जरूरतमन्दों और गरीबों की उदारतापूर्वक मदद करें और जो हमारे पास है, वह समाज का है, यह मानकर लोक सेवा तथा अपने अंचल की सेवा का भाव चरम उदारतापूर्वक और बिना किसी भेदभाव के अपनाएं, ट्रस्टी के रूप में सेवा के मिशन में सहभागी बनते रहें।

ऐसा हमने कर लिया तो अपने आप में शिवत्व का बीज अंकुरित हो जाएगा और वट वृक्ष के रूप में पल्लवित भी। फिर न हमें शिवलिंग के सामने बैठकर हाथ जोड़ने की आवश्यकता रहेगी, न मनों जल का अभिषेक करने की, न पूजा करने या कराने की। असली शिवत्व तभी आ पाएगा जब हम शिव के स्वभाव और विलक्षण गुणों को ईमानदारी के साथ जीवन में अपनाएँ।

सभी को श्रावण मास के अनुष्ठानों में आशातीत सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ….। भगवान भोलेनाथ महा आनंद की भावभूमि प्रदान करें …। हर-हर महादेव।

— डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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