कविता

सावन

सावन की बूंदे मन को हर्षा रही हैं ,

ऐसे मैं तेरी याद मुझको तड़पा है,

 बादल से बूंदे धरती पर टपक रही है,

 पूरी पृथ्वी मानो हरी-भरी हो गई हो,

 मेरे हाथों की हरी हरी चूड़ियां,

 साजन को प्रदेश से बुला रही है,

 बादलों ने जो कहर ढाया है,

 सब जीवो को नया जीवन दे रही हो,

 छोटी छोटी नदियां जो घर के आगे बन गई हैं,

 उन पर कागज की नाव गोरी चला रही हूं,

 खेत खलियान जो सुख रहे थे,

 उन पर बादलों की बूंदे शीतलता दे रही हूं,

 सजन तुम आ जाओ ऐसे मौसम में,

 मेरा सोलह सिंगार तुम्हें बुला रहा है,

 सावन के भीगे भीगे पल, 

मुझे हर पल तेरी याद दिला रहा है।

— गरिमा लखनवी

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384