कविता

इंसान

इंसानियत छोड़ रहा यह क्यों इंसान
फितरत छोंड़के,बन रहा क्यों हैवान।

दर-दर ठोकरें खा रहा है यहाँ इंसान
इंसान तो इंसान,दर्द भी है हलाक़ान।

दर्द से चीखता और कराहता इंसान
आँखें रो रही हैं पर जुबां है बेजुबान।

हो गए हैं अब मुक दर्शक यह इंसान
नीति-नियति से, शून्य हो गई जहान।

कितना दर्द झेलेगा और सहेगा इंसान
यहाँ तो ये आँखें गड़ाए बैठा है शैतान।

क्यों बन गया है अब बेबस यह इंसान
कितनी लूटी जाएगी ये अस्मत ईमान।

दुष्ट-दुराचारियों का भेंट चढ़ता इंसान
खत्म हुई इंसानियत, जा रही है जान।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578