मेरी अर्धांगिनी ।
अंधियारी ज़िंदगी में नूर बनकर आ गयी,
हर ग़ज़ल के शेर में मशहूर बनकर छा गयी।
बिन तुम्हारे ज़िंदगी में इश्क़ सूना था पड़ा,
जन्नतों को छोड़ घर में हूर बनकर आ गयी।
सात फेरों से हुई मेरी शुरू ये ज़िंदगी,
ज़िंदगी में ज़िंदगी दस्तूर बनकर आ गयी।
हर घड़ी हर मोड़ पर तुम साथ मेरे हो खड़े,
आप मेरी ज़िंदगी में सूर बनकर छा गयी।
(सूर- ख़ुशी)
— प्रदीप शर्मा