नारी का घटता आंचल
नारी का घटता आँचल तो,है दुख भरी कहानी।
नारी का अब देख रवैया,है आँखों में पानी।।
शील,सत्व को धारण करके,नारी ने दिखलाया।
संस्कारों की गरिमा लेकर,नित निज मान बढ़ाया।।
नारी ने अनुशासन माना,स्वर्णिम सदा जवानी।
नारी का घटता आँचल तो,है दुख भरी कहानी।।
फैशन की आँधी में फँसकर,नारी है बौराई।
क्या अच्छा है,और बुरा क्या,नहीं समझ वह पाई।।
भारत की नारी की छवि थी,सचमुच सदा सुहानी।
नारी का घटता आँचल तो,है दुख भरी कहानी।।
आज सिनेमा ने भरमाया,बेहद अंगप्रदर्शन।
मनोरोग बढ़ता ही जाता,दिखता है उघड़ा तन।।
जाने क्यों अब नारी ने तो,फूहड़ता की ठानी।
नारी का घटता आँचल तो, है दुख भरी कहानी।।
भौतिकता में डूब गई है,भैया अब तो नारी।
नारी पर तो आई है अब,मादक एक ख़ुमारी।।
नारी का तो चोखा गौरव,अब है बात पुरानी।
नारी का घटता आँचल तो, है दुख भरी कहानी।।
आज़ादी की चाहत रखती,तोड़ सभी अब बंधन।
राख लगा ली माथे पर अब,तज पूजा का चंदन।।
चमक-दमक ने मति-गति फेरी,अब राहें अनजानी।
नारी का घटता आँचल तो, है दुख भरी कहानी।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे