ग़ज़ल
तुम्हारा दिल यूंही हमारा न होता।
हसीं आंख का जो इशारा न होता।
चले गुर्बत में भी हाथ थाम कर,
जहाँ में हर कोई यारा न होता।
मुकद्दर को क्यों कोसते फिर ऐसे;
कर्म जो करे वो बिचारा न होता।
बड़ा दूरियाँ तो चले जा रहे हो;
हमारा तन्हां क्यों गुज़ारा न होता।
हमारे दरमियाँ इक कशिश सी है;
मगर साथ क्यों यूँ गवारा न होता।
मनाते कभी जो समझा कर हमें;
कभी ख्वाब में ये नज़ारा न होता।
— कामनी गुप्ता