हमीद के दोहे
इसकी हमको क्या पड़ी, क्या करता दरबार।
आपस का रिश्ता हमें, खुद करना हमवार।
पहल ज़रूरी काम में, बनिये ज़िम्मेदार।
सपने को अपने अगर, करना है साकार।
पूरी दुनिया देख कर, हैरत से है दंग।
बे मतलब की देश में, छिड़ी हुई है जंग।
दोहों में उसके कभी, उभरा नहीं अमीर।
आम आदमी के लिए, लिखता रहा कबीर।
मौला पर विश्वास कर, रहता यदि वो मस्त।
रोज़ी रोटी के लिए, रहता कभी न त्रस्त।
— हमीद कानपुरी