49 वीं गोष्ठी अंतस्
अंतस् की 49वीं काव्य-गोष्ठी 21 अगस्त 2023 को डॉ जय सिंह आर्य जी की अध्यक्षता, सहारनपुर के गीतकार नरेन्द्र मस्ताना जी के सम्मान में तथा अंतस्-अध्यक्ष डॉ पूनम माटिया के संयोजन-संचालन में आयोजित हुई पूर्वी दिल्ली में दुर्गापुरी में| वागीश्वरी के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन और माल्यार्पण के पश्चात कृष्ण बिहारी शर्मा जी द्वारा सरस, सुंदर एवं वाणी-वंदना प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात अंतस् के कार्यकारी महासचिव द्वारा अध्यक्ष आर्य जी और विशेष सम्मानित मस्ताना जी तथा सभी उपस्थित अतिथियों का सम्मान का किया गया।
काव्यधारा का जो मनहर सिलसिला चला तो कब तीन घंटे बीते पता ही नहीं चला
डॉ जय सिंह आर्य जी…
आँधियों में तीर बनके चमकेगा/ वक़्त की शमशीर बनके चमकेगा
देख लेना एक दिन मेरा वतन!/ विश्व की तक़दीर बनके चमकेगा
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दर्द का गीत मुझको गाने दे/ पतझरों में बहार आने दे
मेरे घावों पे मत लगा मरहम/ मेरे घावों को मुस्कुराने दे
नरेन्द्र मस्ताना……
सौप न देना उन हाथों में,
भारत की तकदीर।
जिनके हाथों से गिर जाये,
संकट में शमशीर।। ………. गीत
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जो मन में आये कर।
प्रभु नाराज़ न हों,
ऐसे कर्मों से डर।। …………. माहिया
पूनम माटिया…
अपना नहीं समझना गगन, बेचना नहीं/ सरहद नहीं बनाना, पवन बेचना नहीं
फूलों पे तितलियाँ हों, हों शाख़ों पे पत्तियाँ/ ख़ुदग़र्ज़ियों में ऐसा चमन बेचना नहीं
बैठा हो घुटने टेक पसीने में इक ग़रीब/ दे देना उसको मुफ़्त क़फ़न बेचना नहीं …… ग़ज़ल से
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एक तिरंगे की ख़ातिर वीरों ने बलिदान दिया/ अपना घर छोड़ वतन को माँ से बढ़कर मान दिया
हिम की चादर हो चाहे गहरी जल की राशि हो/ चहुँ दिशि ही इस सरहद पर अपना तिरंगा तान दिया
जगदीश मीणा जी..
कब तक सुखी रहेंगे आराम करने वाले/ ख़ुद अपनी ज़िन्दगी को गुमनाम करने वाले
रजनीश त्यागी ‘राज़’ जी…
वही फिर रहे हैं हवस के सताए/ ज़रूरत से जिनके थे अरमान ज़्यादा।
बड़ी मुख़्तसर है यहाँ ज़िन्दगानी/ इकठ्ठा न कर ‘राज़’ सामान ज़्यादा।
देवेंद्र प्रसाद सिंह जी…
हे गिरिधर! रक्षा करो अहह! गिरिवर को धारण करो पुनः
फिर से लेकर अवतार प्रभो! हर लो जग का यह दुख अथाह
कृष्ण बिहारी शर्मा जी..
वतन के वीर व्रतियों का अमिट अभियान है झण्डा।
हजारों प्राण के बलिदान की पहचान है झण्डा।
हमारी गर्व से फूले नहीं क्यों छातियां; बोलो-
गगन के भाल पर अंकित हमारा मान है झण्डा।
नरेश शामली जी…
हौसलों में आपके ऐसा जूनून होना चाहिए/नतमस्तक हो ख़ुदा ऐसा मजमून होना चाहिए
मिलती है एक ही बार ज़िंदगी, गले मौत से जब मिलें/ फ़रिश्तें भी करें नाज़ ऐसा खून होना चाहिए
मनोज शर्मा ‘मन जी.. कविता
अभी तो हम सोये है, अपने ही में खोये है/ युग नया है तो कुछ नया करे
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वृक्षों में पीपल हूँ मैं…..हाँ! सनातन हूँ मैं
अंतस् की यह गोष्ठी एक दिवस के अल्पकाल में आयोजित हुई और उत्कृष्ट, मनोरंजक, देशभक्ति व अन्य सार्थक कविताओं, छंदों, गीत-ग़ज़लों से भरपूर रही। सभी ने विविध विधाओं और रसों से ओतप्रोत भावप्रवण रचनाएं पढ़ीं। श्रोताओं ने भरपूर आनंद की अनुभूति की।
बहुत नन्हें शौर्य(मस्ताना जी का पोता) ने भी बालसुलभ कविता सुनाई।
धन्यवाद ज्ञापन के उपरांत राष्ट्रगान के साथ गोष्ठी में स्वादिष्ट व्यंजनों का रसपान किया तथा सभी ने अगले माह प्रस्तावित अंतस् की 50वीं गोष्ठी के लिए शुभकामनायें दीं|