कशमकश
*कशमकश *वह पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं जुटा रहा था ।माँ के ममता की परकाष्ठा ! ऐसा लग रहा था जैसे माँ ने सारी बेड़ियां काट कर उसे बंधन मुक्त कर दिया हो !लेकिन कटे हुए अंगों में वह अपना सबसे कीमती अंग छोड़ कर जा रहा था । बाबा की हार्दिक इच्छा थी कि वह पुस्तैनी व्यवसाय संभाले ।लेकिन माँ अपने सपने उसकी आँखों में ही नहीं दिलो दिमाग में भी समाहित कर दी थी।आज से तीस साल पहले बेटियों को उच्च शिक्षा नहीं दी जाती थी। माँ का बहुत मन था शिक्षिका बनने का लेकिन उन्हें बमुश्किल सातवीं तक की शिक्षा मिली । ऐसे में सारे सपने जागती आँखों से बच्चों में पालने लगी । दीदी का विवाह भी पापा खाते-पीते व्यवसायी परिवार में कर दिये । माँ के धैर्य का बाँध टूट गया उन्होंने उसे अपने पास बुला कर पूछा ; ” गोविंद बेटे अपनी इच्छा बताओ , मानती हूँ माता-पिता की बात मानना हर बच्चे का फर्ज है ,फिर भी तेरे मुँह से सुनना चाहती हूँ कि तुम अपनी जिंदगी कैसे जीना चाहते हो ?””माँ मैं एम ए करने के बाद पी एच डी करना चाहता हूँ ,लेकिन पापा ग्रेजुएशन के बाद मुझे पढ़ाना नहीं चाहते हैं ।उनकी इच्छा आपको पता है ,ऐसे में आप ही बतायें मैं क्या करूँ ?””बेटे मेरी बात मान लो , ट्यूशन करके या जैसे हो, आत्मनिर्भर तुम्हें बनना होगा ,तुम्हें खुद आगे की पढ़ाई अपने बदौलत जारी रखनी होगी । हर पिता की इच्छा होती है ,पुत्र उसकी गद्दी संभाले ,पर मैं इसे बंधन मानती हूँ जा मेरे बच्चे तेरे संस्कार एवं तेरी शिक्षा तेरी राहें आसान करे ।”थके कदमों से मगर पूरे आत्मविश्वास से वह आगे बढ़ता जा रहा था । अपनी जिम्मेदारियों का बोझ दूर जाते हुए भी हर पल महसूस कर रहा था ।माँ की आवाज अभी भी उसके कानों में गूँज रहे थे, ‘जा मेरे लाल’ । “माँ लौट कर आऊँगा भरोसा करना ।”
— आरती रॉय