कविता

आखिरी पन्ना

जीवन की किताब हम पढ़ते ही रहते हैंउसके पन्ने पलटते ही रहते हैंअच्छे बुरे का विचार किये बिनाकुछ पन्ने पढ़ते, कुछ बिना पढ़े ही छोड़अगले पन्ने पर आ जाते हैंउस पन्ने को भी अपनी सुविधा से ही पढ़े या बिना पढ़े ही खुश हो जाते हैं।जीवन के पन्नों से हम कभी खुश कभी नाखुश ही होते हैंहर पन्ने की एक एक इबारत हम अपनी सुविधा से पढ़ रहे होते,पर विडंबना यह भी है कि हमजीवन के पन्नों को तो अनवरत पलटते रहना चाहते हैंपर आखिरी पन्ने तक पहुंचना ही नहीं चाहते,फिर भी आखिरी पन्ने तक पहुंच ही जातेऔर मायूस होकर बिना पढ़े हीअपने जीवन की किताब खुली छोड़ न चाहते हुए भी दुनिया से विदा हो जाते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921