कविता

उपासना

पूजा आराधना उपासना कीजिएमगर पवित्र मन और भाव से,न कि दिखावे या महज खानापूर्ति के लिए तब ही इसका कोई मतलब हैवरना ये सब बेमतलब है।जिसका न कोई लाभ होगा औरनहीं मन को सूकून मिलेगा,क्योंकि ये सिर्फ नाटक के सिवाऔर कुछ नहीं होगा,पर्दा उठा रहने तक ही दिखेगा,पर्दा गिराओ नहीं कि सबकुछ खत्म होगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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