हास्य व्यंग्य

यमराज मेरा मेहमान

कई दिनों से मैं महसूस कर रहा हूंकि जब भी मैं घर के बाहर सुबह सुबहचाय के साथ अखबार पढ़ने बैठता हूं, घर के सामने लगे पेड़ पर कोई मुझे घूरता हैन वो पास आता है,न ही कुछ कहता हैबस टुकुर टुकुर देखता रहता है।कल रात मैंने जब श्रीमती जी को इस बारे में बतायातो वो बड़ी अदा से मुस्कराते हुए बोलीहूजूर! दीन दुनिया की खबर रखते हैंसमझदारी घर की में अलमारी में सजाये रखते हैं।उसका थोड़ा उपयोग करना सीखो।मैं झल्ला गया अरे! यारनसीहत मत झाड़ो, साफ साफ बताओ।श्रीमती जी ने समझायाहुजूर वो कोई और नहीं जो आपको नहीं घूरता हैवो यमराज है जो अपनी ड्यूटी पर होता हैआपके हाथों की चाय का कप देख रुक जाता है,सच बताऊं तो चाय पीना चाहता हैमेरी बनाई चाय की खुशबू में उलझकरबेचारा अपनी ड्यूटी तक भूल जाता है,लापरवाही के लिए डांट भी खाता होगापर तुम्हें शर्म तक नहीं आता,बेचारा एक कप चाय के लालच में पेड़ परउम्मीद लगाकर बैठ जाता है।सच बताऊं तो वो सुबह की चाय पीने आता हैउस चाय में उसे मेरा अक्स नज़र आता है।कल आप दो कप चाय लेकर बैठनाफिर देखना सब समझ आ जाएगाआपकी हर शंका का समाधान हो जाएगा।अगले दिन दो कप चाय और बिस्कुट के साथमैं अखबार लेकर बैठ गया,अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्कियां लेने लगापेड़ पर आज मुझे कोई घूरता नहीं लगाहां! चाय का दूसरा कप धीरे धीरे जरुर खाली होता गयाप्लेट से पांच बिस्कुट भी अपने आप गायब हो गया।दूसरे कप की चाय जब खत्म हो गई,मुझे धन्यवाद के साथ रविवार को फिर आऊंगाका अस्पष्ट स्वर सुनाई दिया,और एक साया उड़ता हुआ दिखाई दियामुझे समझ में आ गयायमराज चाय पीकर फ़ुर्र हो गया,अगले रविवार आने का संदेश एडवांस में दे गया,अब मेरा संदेह मिट गया,श्रीमती जी के दिमाग का लोहा मान गया,यमराज मेरा हमेशा के लिएजबरदस्ती का मेहमान बन गया।

*सुधीर श्रीवास्तव

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