कविता

खुश रहने की वजह

ईमानदारी से बताइएगा आप सब हमकोकि हम झूठ कहते हैंऔर आप ऐसा बिल्कुल नहीं करते।पर मैं जानता हूं कि हम नहीं आप झूठ बोल रहे हैंहम भी आपका दोष नहीं दे रहे हैं।पर सच तो यह है कि हम खुद हीखुश रहना ही नहीं चाहते हैंऔर खुश रहने की वजह ढूंढते हैं,अपने आपको ही बेवकूफ बनते हैंखुद ही खुद को गुमराह करते हैंबेचारी वजह को गुनहगार मानते हैं।पर ऐसा बिल्कुल नहीं हैये सब कोरा बकवास है,सिर्फ बहाना हैक्योंकि हमें तो ख्वाहिशों ने इतना जकड़ रखा हैकि हम लालची,दलाल और गुलाम बनते जा रहे हैंजितना है उससे और ज्यादा पाने की ख्वाहिशहर दम दौड़ते भागते रहते हैं,भूखे भेड़िए की तरह हमारी भूख ही नहीं मिटतीहमारी तृष्णा की भूख कभी शांत ही नहीं होती।खुश रहने की बात सोचने की फुर्सत जब हमें ही नहीं मिलतीतब बेचारी वजह ही आरोपों का शिकार बनती है।खुश रहने के लिए वजह की नहींइच्छा शक्ति की जरुरत होती हैखुश रहने की चाह रखने वालों कोकांटों में भी खुशी मिल जाती है,धन दौलत के भूखे भेड़ियों की भूखश्मशान तक में नहीं मिटती है,इसीलिए खुश रहने की वजह भीसबके नसीब में नहीं होती है।जो वजह ढूंढ़ने के बजाय खुश रहना चाहते हैंवे तो हर हाल में खुश ही नहीं मस्त भी रहते हैं,और जो समय सुविधा से खुश रहने की वजह ढूंढते हैंवे सिर्फ झुनझुना बजाते हैं,सिर्फ दौड़ते भागते रह जाते हैंऔर खुशी से बहुत दूर रह जाते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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