तमन्ना
मुद्दतों से बड़ी तमन्ना थी मुझे तुमसे मिलने की,
पर दिख ना रहा था रास्ता मुझे कोई मेरी ज़िन्दगी में,
लेकिन गये क्या हम उनके दर पर,
खुलते ही दरवाजा के हो गए दीदार उनके,
दीदार होते ही नज़रे चार हुई,
आँखों ही आँखों में बात हुई,
कुछ शिकवे तुम्हारे थे,
कुछ शिकवे हमारे थे,
क्यों चले गए थे जीवन से,
ऐसा लगता था मानो जिंदगी वीरान हो गई हो,
सारे जहाँ की खुशियां तुम अपने साथ ले गए हों,
ऐसे मिले हम तुमसे,
जैसे जन्मों से बिछड़े हुए हो,
आकर मिले गले एक दूजे से,
सारे गिले शिकवे आसुओं में बह गए।।
— गरिमा
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