गजल
किसने किसका दिल तोड़ा ये सारे ज़माने को है पता
कौन उजड़ा और कौन बसा ये सारे ज़माने को है पता
किसने तोड़ी इश्क की कसमें प्यार के वादे भूला कौन
कौन वफा की राह चला ये सारे ज़माने को है पता
इक तू ही था दुनिया में जो समझ सका ना हाल मेरा,
मैं कितना तेरे लिए तड़पा ये सारे ज़माने को है पता
उनकी गिनती किसे यहां जो जलते रहे फानूसों में
तूफानों से कौन लड़ा ये सारे ज़माने को है पता
ज्यादा का लालच नहीं मुझे जो है उसमें खुश रहता हूँ
हूँ आदमी मैं सीधा सादा ये सारे ज़माने को है पता
नीयत हो या तबियत हो सच सामने आ ही जाता है
कौन बुरा है कौन भला ये सारे ज़माने को है पता
— भरत मल्होत्रा