कविता

जीवन का सच 

जीते जी किसी का सम्मान ना कर पाए, 

तो मरने के बाद उसका गुणगान क्यों करते हैं, 

जीवन छड़भंगुर है यह कोई समझ ना पाया, 

क्या खोया क्या पाया इसी का आकलन करते रहे, 

जीवन सुख दुःख का मिश्रण है, 

जीवन परिवर्तन का नियम है, 

जीवन को संवारना है, 

जीवन को निखारना है, 

जीवन फूल की तरह है, 

पहले कल फिर फूल फिर मुरझा जाता है, 

जीवन रंग मंच का मेला है, 

सब आते है अपना किरदार निभाने, 

लोग क्यों किसी की भावनाओं से हरदम खेलते हैं, 

क्या सोचते हैं की दूसरे के दिल पर कुछ असर ना होगा, 

वो पागल है जो दूसरों के लिए अपना समय बर्बाद करते हैं, 

हम तो यारों, यारो की मस्ती में मस्त रहते हैं। ।

— गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384